कुशवाहा–पुराण :इंद्रलोक की अदालत और बिहार का नया उप–इंद्र (एक व्यंग्य–महाकाव्य)- (-डॉ. प्रदीप)
- Pradeep Thakur
- Nov 24
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प्रथम सर्ग : स्वर्ग में हलचल
देवलोक में आज अद्भुत शोर था,
इंद्रसभा में असामान्य जोर था।
न कोई असुर आया था,
न युद्ध का दृश्य,
पर एक समाचार ने हिला दिया पूरा इंद्र–विश्व।
नारद दौड़ते हुए आए,
वीणा काँप रही थी,
हँसी दबा रहे थे,
पर आवाज़ थरथरा रही थी।
इंद्र ने पूछा—“नारद, अब कौन-सा प्रपंच हुआ?
”नारद हँसे—“देव, पृथ्वी परआपका नया उत्तराधिकारी प्रकट हुआ!”
इंद्र चौंके—“कौन? कहाँ? किस वंश से?
”नारद बोले—“बिहार प्रदेश से।
”इंद्र ने माथा पकड़ लिया—“उफ़, वहाँ फिर क्या हुआ?
”नारद—“देव, कमाल हो गया—
कुशवाहा जी ने अपने पुत्र को
बिना किसी परीक्षा,
बिना किसी तपस्या
सीधे मंत्री बनवा दिया!”
द्वितीय सर्ग : उप–इंद्र की उपाधि
इंद्र के महल में विस्फोट-सी हँसी उठी,
गंधर्वों की वीणाएँ स्वतः बजने लगीं।
एक देव ने उत्सुकता से पूछा—
“क्या पुत्र ने अनेक मंत्र सीखे थे?
युद्ध लड़े? तप किया?”
नारद बोले—“देव, कुछ भी नहीं।
बस पिता ने कहा—
‘चलो बेटा, मंत्री बन जाओ।
’और बेटा बन गया।”
इंद्र बोले—“यह तो हमारी देव–वंश परंपरा से भी तेज़ है!
”नारद बोले—“देव, वहाँ लोग उन्हें अब‘उप–इंद्र’ कहने लगे हैं।
”इंद्र का हृदय हिल गया—“उप–इंद्र?
अरे, मैं तो वर्षों की साधना से इंद्र बना था,
और यहाँ लोग मिनटों मेंइंद्र–के–नीचे–उप–इंद्र बन जा रहे?”
त्रितीय सर्ग : स्वर्गदूतों का निरीक्षण
स्वर्गदूत पृथ्वी-यात्रा पर गए,
बिहार की राजनीति देख अभिभूत हुए,
देखा —न कोई रिज्यूमे,न कोई दस्तावेज,
न कोई अनुभव,न कोई विद्वता की परीक्षा,
बस कुर्सी थी,शपथ थी,
और पितृ उप इंद्र की कृपा से,
पुत्र सीधे मंत्री पद पर आरोहित था।
स्वर्गदूतों ने लौटकर कहा—“देव,
स्वर्ग के नियम कितने कठिन हैं—
आपके पुत्रों को भी पद पाने के लिए,
तप करना पड़ता है-पर पृथ्वी पर..
वंश ही पर्याप्त है।”
इंद्र ने सिर हिलाया—“तब तो वह पुत्र,
हमारे देवपुत्रों से भी तेज़ निकला!
मान गया वह तो लायक उप–इंद्र है!”
चतुर्थ सर्ग : लोकतंत्र का विलाप
लोकतंत्र कोने में रो रहा था,
उसने कहा—“मेरा सिद्धांत था—जनता चुनेगी,
पर यहाँ तो पिता चुनते हैं,और जनता तालियाँ बजाती है।”
नारद बोले—“हे लोकतंत्र देव, अब आँसू पोंछिए,
अब आप ‘परिवारतंत्र’ में बदल गए,
”लोकतंत्र ने कहा—“परिश्रम? योग्यता? अनुभव?”
नारद हँसे—“ये शब्द बिहार से हो गए हैं नदारद ! ”
पंचम सर्ग : संविधान की चिंता
संविधान ने अपना ग्रंथ खोला,
कहने लगा—“यह प्रावधान विद्वानों के लिए था,
कुशल प्रशासकों के लिए,समाज–सेवियों के लिए,
नीति–निर्माताओं के लिए”इफ
“पर यह क्या!अब मेरा उपयोगबिना योग्यता के,
सीधे मंत्री बनाने में होने लगा है?”
नारद बोले—“देव, आप चिंता न करें,
यदि दिक्कत आए,तो संशोधन कर लेंगे,
आपको तो सौ से अधिक बार बदला गया है,
एक और बदलवा देंगे,
यह उप इंद्र ग्रसित बिहार है देव,
कुछ भी संभव है अब यहाँ ।
षष्ठ सर्ग : जनता की मुस्कान
जनता हँसते-हँसते बोली,
“भैया, हम तो तमाशा देखने आए थे,
इंजीनियरिंग डिग्री हो या न हो,
मंत्री पद तो घर में ही बन जाए,
फिर क्यों हम मेहनत करें?”
एक युवक बोला—
“अब मुझे UPSC क्यों देना?
एक नेता पापा दिला दो,
मैं भी मंत्री बन जाऊँगा!”
दूसरा बोला—“कुशवाहा मॉडल का प्रसार हो
‘परिवार प्रबंधन एवं मंत्री प्रशिक्षण पाठ्यक्रम’ के नाम से।”
सप्तम सर्ग : निष्कर्ष
इंद्र ने घोषणा की—
पृथ्वी के उप–इंद्र को है स्वर्ग का सम्मान,
”गंधर्वों ने गाया—“जय हो कुशवाहा संस्कृति,
जो मेहनत को बेकार,वंश को सशक्त,
और लोकतंत्र को मनोरंजन बनाती है,
स्वर्ग में तालियाँ बजीं—पृथ्वी ने हँसकर सिर हिलाया!
और इस प्रकारकुशवाहा–पुराण का यह अध्याय,
राजनीति और व्यंग्य के इतिहास मेंअमर हो गया।


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